बृजेश पाठक द्वारा
लोकतांत्रिक देश में किसी भी मामले का विरोध हो सकता है हर मामले पर लोगों को अपनी बात कहने रखने का अधिकार है लेकिन इस अधिकार के नाम पर हिंसा को स्वीकार नहीं किया जा सकता और उस हिंसा को तो बिल्कुल भी नहीं जिसमें सरकारी, गैर सरकारी संपत्ति जलाई जा रही हो और पुलिस को निशाना बनाया जा रहा हो ।
राजधानी दिल्ली समेत देश के अन्य कई बड़े शहरों में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर जिस तरीके से देशद्रोही, भोंड़ा प्रदर्शन के साथ बड़े पैमाने पर आगजनी, तोड़फोड़ और पुलिस पर हमले की घटनाएं हो रही हैं वे गंभीर चिंता का विषय है ।
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर आम जनता तक अपनी बात पहुंचाने के लिए देश के राजनीतिक दल ने एक अभियान शुरू करने का जो फैसला किया । \वह देर से उठाया गया कदम ही दिखता है । इस तरह के अभियान की शुरुआत और पहले होना थी । खैर ठीक है ।जब जागे तब सवेरा । इस अभियान के तहत अगले 10 दिनों में तीन करोड़ परिवारों को नागरिकता संशोधन कानून के बारे में बताया जाएगा और साथ ही जगह-जगह प्रेस कांफ्रेंस भी की जाएंगी । कायदे से यह काम तो अब तक हो जाना चाहिए था । मोदी सरकार को भी आम जनता से संपर्क- संवाद की जरूरत तभी समझ लेनी चाहिए थी । जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नागरिकता कानून पर व्यापक प्रचार-प्रसार की दरकार है । यह समझना कठिन है कि नागरिकता कानून पर विपक्ष के तीखे विरोध के बाद भी सत्ता पक्ष नागरिकता संशोधन कानून का प्रचार प्रसार क्यों नहीं कर सका । उसे आम जनता के बीच भी वैसी ही सक्रियता दिखाने की जरूरत है । जैसे उसने नागरिकता संशोधन विधेयक को आगे बढ़ाते वक्त संसद में दिखाई । लगता है कि उसने इस विधेयक पर संसद की मुहर लगाते ही । मान लिया कि अब इस मामले पर कुछ कहने बताने और खासकर विरोध कर रहे लोगों से बात करने की जरूरत नहीं मानते अच्छे भले कारण हैं ,कि सत्ता पक्ष यह भी नहीं समझ सका की नागरिकता संशोधन कानून के साथ प्रस्तावित एनआरसी को लेकर विपक्ष और तथा कथित राजनीतिक लोग जनता के बीच किस तरह भ्रम फैलाकर उसे गुमराह करने के साथ जनता को उकसाया भी जा सकता है । यह काम विपक्षी नेताओं की ओर से तो किया ही जा रहा । बाम पंथी रुझान वाले बुद्धिजीवी और फिल्म जगत के लोगों की ओर से भी किया जा रहा । इस काम में मीडिया के एक हिस्से की भी भूमिका है, इसी कारण विरोध के नाम पर अराजकता का खुला प्रदर्शन भी किया जा रहा है और उसे बेशर्मी के साथ सही भी ठहराया जा रहा है । उन्माद भरे उपद्रव का सिलसिला भी इसलिए कायम है । यह ढोंग की पराकाष्ठा ही है । कि पागलपन भरी हिंसा में रेलवे की करीब 90 करोड़ की संपत्ति स्वाहा हो जाने, विभिन्न राज्यों में 300 से अधिक पुलिस वालों के लहूलुहान होने और हजारों वाहन फूंके जाने के बाद भी यह राग अलापा जा रहा है कि हम तो शांति के साथ अपना विरोध कर रहे हैं । अभी तक करीब 20 लोगों की जान जा चुकी है ।
आखिर इस नतीजे पर क्यों ना पहुंचा जाए ,कि नागरिकता कानून का विरोध केवल राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है और लोगों को जानबूझकर बरगलाया जा रहा है । आज मनमोहन सिंह के साथ कांग्रेश भी यह भूलना पसंद कर रही है ।कि बंगाल देश से पलायन करके आय अल्पसंख्यकों को लेकर उसकी क्या मांग थी । क्या वह एक दिखावटी मांग थी । और इसलिए 10 साल तक संप्रग सरकार ने बंगाल देसी शरणार्थियों के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया ।कांग्रेश को यह नहीं भूलना चाहिए कि असम में एनआरसी तैयार करने का काम उस समझौते के तहत किया गया । जो राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री रहते समय वहां के नेताओं से किया था । कम से कम असम से राज्यसभा सदस्य रहे , मनमोहन सिंह तो इस सबसे भली तरह परिचित ही होंगे । किसी मामले पर वोट बैंक की राजनीति नई नहीं है , लेकिन नागरिकता कानून और प्रस्तावित एनआरसी को लेकर तो देश को शर्मिंदा करने वालीअराजकता वाली राजनीति की जा रही है । सोनिया गांधी नागरिकता कानून के विरोधियों के साथ खड़ी होना पसंद कर रही है ,लेकिन शांति की अपील करना जरूरी नहीं समझ रही । इसी का कारण है की भोंड़ा प्रदर्शन भारतवर्ष में हो रहा है इस प्रदर्शन के कारण शासकीय संपत्ति तथा निजी लोगों की संपत्ति बर्बाद हो रही है । इसका खामियाजा कौन उठाएगा यह विचार करने का सवाल है ।
देशद्रोही ,भोंड़ा प्रदर्शन कर भारत कि शांतिप्रिय जनता को उकसाने वाले राजनीतिक मठाधीश फिर भी गांधी अंबेडकर ,संविधान ,लोकतंत्र की दुहाई दे रहे है । छल- छद्म के अलावा और कुछ नहीं । हैरानी है कि जब सरकार इस सब के बारे में जान रही है ।
कि इन लोगों द्वारा शांतिप्रिय भारत की जनता में भ्रम फैलाकर भयभीत किया जा रहा है ।तब फिर राज्य एवं केंद्र सरकारों द्वारा समय रहते उपद्रवियों पर कारवाही क्यों नहीं की जा रही है। देश एवं आम जनता की संपत्ति को नष्ट कराने में क्या ?स्थानीय राज्य सरकारों को अच्छा लगता है । सिर्फ वोट बैंक की खातिर इनको यह अधिकार नहीं कि वे देश की संपत्ति तथा जन सामान्य शांतिप्रिय नागरिकों की संपत्ति को उपद्रवियों से नष्ट कराएं । सरकार की ओर से आम लोगों तक पहुंचाने का काम समय रहते अतिशीघ्र किया जाए ।
कांग्रेश, तृणमूल कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल नागरिकता कानून को लेकर मोदी सरकार को घेर रहे हैं । वे सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचे हैं । अगर उन्हें सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा है ,तो उसके फैसले का इंतजार क्यों नहीं करते । वे इस कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं । लेकिन क्या संसद से पारित कानून को खारिज करना संविधान और लोकतंत्र सम्मत है । आखिर जब सुप्रीम कोर्ट नागरिकता कानून की संवैधानिकता की परख करने को तैयार है । तो फिर अनावश्यक धरना प्रदर्शन और हिंसा के जरिए देश को अशांति की आग में क्यों झोंका जा रहा है ।